प्राचीन सूर्य नमस्कार का परिचय ( introduction to sun salutation )
दोस्तों हम सभी जानते हैं धरती पर ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य है। सूर्य ही हमारे नौ ग्रहों को शक्ति प्रदान करता है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों को सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करने की विशेष कला में महारत हासिल था। सूर्य से अधिक से अधिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए वे विशेष प्रकार की शारीरिक क्रियाएं करते थे जो आगे चलकर सूर्य नमस्कार कहलाई।
सूर्य नमस्कार करने की सही विधि ( right method of sun salutation )
- प्रारंभ में आप प्रणाम आसन में खड़े हो जाएं, ध्यान रहे आपका चेहरा सूर्य की ओर हो और दोनों पैरों को आपस में मिला ले। अब दोनों हाथों को सीने से लगाकर नमस्कार की मुद्रा में खड़े हो जाएं।
- अब दोनों हाथों को ऊपर उठाते हुए धीरे-धीरे सिर के पीछे ले जाने का प्रयास करें। इसके साथ-साथ आप कमर को भी थोड़ा पीछे झुकाने का प्रयास करें। इस मुद्रा को हस्त उत्तानासन कहते हैं।
- इसके बाद आप धीरे-धीरे आगे को झुकते हुए और सांस को छोड़ते हुए अपने हाथों से पैरों की अंगुलियों को स्पर्श करें। ऐसा करते समय आप यह प्रयास करें कि आपका माथा घुटनों को स्पर्श करें। इस मुद्रा को पादहस्तासन कहते हैं।
- अब पुनः धीरे-धीरे सांस को अंदर खींचते हुए दोनों हथेलियों को जमीन पर टिकाए और एक पैर पीछे ले जाएं जबकि दूसरे पैर का घुटना मोड़ कर जमीन की ओर झुकाए। इस अवस्था में रहते हुए अपने चेहरे को आसमान की ओर रखें। इस मुद्रा को अश्व-संचालन आसन कहते हैं।
- अब सांस छोड़ते हुए दोनों हाथों और पैरों को सीधी लाइन में रखते हुए Push-Up की अवस्था में आ जाएं। ध्यान रहे इस अवस्था में आपकी कमर बिल्कुल सीधी रहे। इस अवस्था को दंडासन कहते हैं।
- इसके बाद सांस लेते हुए अपनी हथेलियों को थोड़ा मोड़ कर सीने और घुटनों को जमीन से स्पर्श कराएं। थोड़ी देर इस अवस्था में अपनी सांसों का स्तंभन करें। इस मुद्रा को अष्टांग नमस्कार कहते हैं।
- अब पुनः अपनी हथेलियों को जमीन पर रखकर पेट को जमीन से थोड़ा ऊपर रखते हुए, कमर को मोड़ कर पीछे की ओर जाने का प्रयास करें। इस मुद्रा को भुजंग-आसन कहते हैं।
- इसके पश्चात अपनी सिर के आगे झुकाते हुए अपनी हथेलियों और पैरों को जमीन पर रखते हुए अपने नितंबों को ऊपर ऊंचा उठाएं। इस मुद्रा को अधोमुख शवासन कहते हैं।
- अब पुनः धीरे-धीरे सांस को अंदर लेते हुए अपने दूसरे पैर को पीछे की ओर ले जाएं। साथ ही साथ अपने पहले पैर को मोड़ते हुए अपनी जांघों को सीने से स्पर्श कराएं और अश्व-संचालन की मुद्रा में आ जाए।
- अब पुनः धीरे-धीरे सांस को छोड़ते हुए व आगे की ओर झुकते हुए हाथों से पैरों की अंगुलियों को स्पर्श करें। अर्थात आप पुनः पादहस्तासन में आने का प्रयास करें।
- इसके पश्चात आप फिर से हस्त उत्तानासन की अवस्था में आने का प्रयास करें। तत्पश्चात पहले की भांति प्रणाम आसन में खड़े हो जाएं।
नोट : इस प्रकार से सूर्य नमस्कार का एक संपूर्ण चक्र पूरा होता है। अपने शरीर की आवश्यकता और क्षमता के अनुसार सूर्य नमस्कार के चक्रों की संख्या बढ़ाई जा सकती है।
सूर्य नमस्कार के फायदे ( benefits of sun salutation in hindi )
- सूर्य नमस्कार करने से शरीर लचीला बनता है,
- सूर्य नमस्कार करने से याददाश्त में वृद्धि होती है,
- सूर्य नमस्कार करने से कब्ज रोग समाप्त होता है,
- सूर्य नमस्कार करने से शारीरिक संतुलन में वृद्धि होती है,
- सूर्य नमस्कार करने से शरीर दिन भर ऊर्जावान बना रहता है,
- सूर्य नमस्कार करने से शरीर में रक्त परिसंचरण अच्छा होता है,
- सूर्य नमस्कार हमारे शरीर के अतिरिक्त वजन को कम करता है,
- सूर्य नमस्कार को करने से शरीर की पाचन शक्ति में सुधार होता है,
- सूर्य नमस्कार करने से शरीर का कंकाल तंत्र भी मजबूत बनता है,
- सूर्य नमस्कार करने से कंधे, सीने, जांघ, कमर और हिप्स की मांसपेशियां सुडौल बनती है।
सूर्य नमस्कार करते समय यह सावधानियां अवश्य रखें ( precautions in sun salutation )
- सूर्य नमस्कार प्रातः काल खाली पेट ही किया जाना चाहिए,
- सूर्य नमस्कार प्रारंभ में धीरे-धीरे करना चाहिए,
- सूर्य नमस्कार करने से पहले ढीले वस्त्रों को धारण करना चाहिए,
- सूर्य नमस्कार शांत, ताजे हवादार और खुले वातावरण में करना चाहिए,
- ऐसे व्यक्ति जिन्होंने पेट या पीठ का कोई ऑपरेशन कराया हो, उन्हें इस आसन को करने से परहेज करना चाहिए,
- शरीर में कोई भी विकार हो तो सूर्य नमस्कार करने से पहले अपने योग गुरु या चिकित्सक से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए।
कोई भी आसन करने से पहले कृपया अपने योग गुरु से अवश्य परामर्श ले लें। सभी आसन अभ्यासी को बताए गए नियम अनुसार ही करना चाहिए। गलत प्रकार से आसन करने पर कुछ मामलों में शरीर को नुकसान भी पहुंच सकता है।